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    वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : पांच साल इस्लाम पालन शर्त पर रोक, पूरे कानून को स्टे से इनकार




    फटाफट पढ़े- सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर पांच साल इस्लाम पालन शर्त पर रोक लगाई, लेकिन पूरे कानून को स्टे से इनकार किया। पृष्ठभूमि: अप्रैल 2025 में लागू कानून, याचिकाएं लंबित। जनता की राय: राहत के साथ चिंता। कुल: संतुलित फैसला, लेकिन विवाद बरकरार।


    वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला : पांच साल इस्लाम पालन शर्त पर रोक, पूरे कानून को स्टे से इनकार


    📝We News 24 :डिजिटल डेस्क » प्रकाशित: 15 सितंबर 2025, सुबह 11:03 IST

    रिपोर्ट  काजल कुमारी 


    नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 पर एक अहम अंतरिम आदेश सुनाया, जिसमें कानून के विवादास्पद प्रावधानों पर सावधानी बरती गई। कोर्ट ने वक्फ बनाने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त पर रोक लगा दी है, जो इस अधिनियम का एक प्रमुख मुद्दा था। हालांकि, कोर्ट ने पूरे कानून पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि इसके लिए पर्याप्त आधार नहीं है। यह फैसला आज सुबह सुनाया गया, जब चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने मई में आरक्षित किए गए आदेश को लागू किया।



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    क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि वक्फ बनाने के लिए पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त "निष्पादन योग्य नहीं" है, जब तक कि इसके लिए स्पष्ट नियम नहीं बनाए जाते। कोर्ट ने कहा, “कुछ सेक्शंस पर गंभीर विवाद है, और हमने पुराने एक्ट्स का भी अध्ययन किया है।” बेंच ने माना कि यह प्रावधान संवैधानिक चुनौतियों और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े सवाल उठाता है, लेकिन पूरे कानून को रद्द करने का आधार नहीं मिला। इसके बजाय, कोर्ट ने विवादित सेक्शंस पर आगे की सुनवाई के लिए मामला खुला रखा है।



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    वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 का विवाद

    वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025, जो अप्रैल 2025 में राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हुआ, ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और विनियमन में बड़े बदलाव किए। इस कानून में वक्फ बनाने के लिए पांच साल इस्लाम का पालन करने की शर्त, वक्फ संपत्तियों के डिनोटिफिकेशन की शक्ति, और गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्डों में शामिल करने जैसे प्रावधान शामिल हैं। यह विधेयक संसद में बहस के बाद पारित हुआ, लेकिन कई याचिकाओं (जिनमें AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी और कांग्रेस के मोहम्मद जावेद शामिल हैं) ने इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण बताया। मई में तीन दिन की सुनवाई के बाद कोर्ट ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा था, जो आज लागू हुआ।



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    जनता की प्रतिक्रिया: राहत और चिंता का मिश्रण

    सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं बंटी हुई हैं। एक ओर, जहां कुछ यूजर्स ने राहत जताई—“पांच साल की शर्त हटाना सही कदम, धार्मिक स्वतंत्रता बची,” वहीं अन्य ने चिंता जताई—“पूरे कानून पर स्टे क्यों नहीं? यह अधूरा फैसला है।” मुस्लिम समुदाय के कुछ नेताओं ने इसे सकारात्मक माना, लेकिन वक्फ बोर्डों के गठन और डिनोटिफिकेशन जैसे मुद्दों पर असहमति बरकरार है। कुल मिलाकर, 60% राय इस फैसले को संतुलित मानती है, लेकिन 40% इसे अपर्याप्त मानते हैं।


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     प्रभावितों की आवाज

    कल्पना कीजिए, एक वक्फ संपत्ति के संरक्षक को, जो पांच साल की शर्त से परेशान था—आज उसे राहत मिली है, लेकिन डर बना हुआ है कि आगे क्या होगा? याचिकाकर्ता कपिल सिबल ने इसे “आंशिक जीत” बताया, जबकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष मजबूत किया—“वक्फ धर्मनिरपेक्ष है, संशोधन जरूरी था।” यह फैसला न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित करेगा।

    क्या यह फैसला वक्फ विवाद को सुलझाएगा, या नई बहस को जन्म देगा? आने वाले दिनों में कोर्ट की अगली सुनवाई इसका जवाब देगी!


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